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अध्याय 11 ,श्लोक 3



श्लोक

एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर । द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥3॥

एराम् एतत् यथा आत्थ त्वम् आत्मानाम् परम् ईश्वर। द्रष्टुम्
इच्छामि ते रुपम् ऐश्वरम् पुरुष-उत्तम ।। ३ ।।

शब्दार्थ

(उत्तम पुरुष) हे महापुरुष ( श्री कृष्ण ) (यथा) जिस तरह (आत्मानम्) स्वयम् (त्वम्) आपने (ऐश्वरम्) ईश्वर (की) (परम) महानता (का प्रमाण देने) (एतत् ) इन (ईश्वर की दिव्य सांसारिक निर्माण के) (आत्य) (बारे में) कहा (एवम्) इसी तरह (मैं) (ते) आपसे (ऐश्वरम्) ईश्वर (की) (रुपम्) आध्यात्मिक रचना को (द्रष्टुम्) देखने का (इच्छामि) इच्छुक हूँ।

अनुवाद

हे महापुरुष श्री कृष्ण! जिस तरह स्वयम् आपने ईश्वर (की) महानता का प्रमाण देने इन ईश्वर की दिव्य सांसारिक निर्माण के बारे में कहा, इसी तरह (मैं) आपसे ईश्वर (की) आध्यात्मिक रचना को देखने का इच्छुक हूँ।

नोट

'रूप' का अर्थ हिन्दी भाषा में आकार है। किन्तु www.shabdkosh.com इस वेबसाईट पर रुप के ४५ अर्थ बताए गए हैं, तो इसका अर्थ आकार के अतिरिक्त भी और बहुत कुछ होता है। ईश्वरचंद ने अपने शब्दकोश के पेज नं. ७८८ पर रुपम का अर्थ अलंकारिक वर्णन लिखा है। श्लोक नं. ११.४३ में ईश्वर को अप्रतिम कहा गया है अर्थात जिसकी कोई प्रतिमा नहीं या आकार नहीं। और श्लोक नं. ११.६ में ईश्वर ने अपने आपको दिखाने के बदले अपने दिव्य रचनाओं को दिखाया। इस कारण हम इस शब्द का अर्थ दिव्य रचना ही लेंगे।