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अध्याय 11 ,श्लोक 30



श्लोक

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः प्रतपन्ति
विष्णो ||30||

लेलिहसे ग्रसमानः समन्तात् लोकान् समग्रान् वदनैः ज्वलद्भिः ।
तेजोभिः आपूर्य जगत् समग्रम् भासः तव उग्राः प्रतपन्ति विष्णो ।। ३०।।

शब्दार्थ

(विष्णो) हे विष्णो (ज्वलद्भिः) (आपके) जलते हुए (मुख की) (बदनैः) आग (लोकान्) संसार के ( समग्रान ) सभी लोगों को (समन्तात् ) हर तरफ से (लेलिहसे) चाट कर (ग्रसमानः) खा रही है। (जगत्) यह संसार ( तव ) आपकी (प्रतपन्ति) भड़कती ( उग्राः) भयंकर (तेजोभिः) आग की (भासः) किरणो से (गर्मी से) (आपुर्य) भरा हुआ है।

अनुवाद

हे विष्णो, आपके जलते हुए मुख की आग संसार के सभी लोगों को हर तरफ से चाट कर खा रही है। यह संसार आपकी भड़कती भयंकर आग की किरणों से (गर्मी से) भरा हुआ है।