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अध्याय 11 ,श्लोक 32



श्लोक

श्रीभगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः ॥32॥

कालः अस्मि लोक क्षय-कृत् प्रवृद्धः लोकान् समाहर्तुम् इह प्रवृत्तः ।
ऋते अपि त्वाम न भविष्यन्ति सर्वे ये अवस्थिताः प्रति-अनीकेषु योधा ।। ३२।।

शब्दार्थ

(श्री भगवान उवाच) आदरणीय यमराज बोले (कालः अस्मि) मैं यमराज हूँ (लोक) संसार (के लोगों को) (क्षयकृत) मृत्यु देना मेरा काम है (इह) इस संसार को ( प्रवृत्तः) सुरक्षित (रखने के लिए) (लोकाम्) (मैं) संसार के (प्रवृद्ध) अहंकारी (लोगों का) (समाहर्तुम) विनाश (करता हूँ) (त्वाम) तुम्हारे (कृत) बिना (अपि) भी (भविष्यान्ति) भविष्य में (ये) यह (सर्व) सारे (योधाः) सैनिक (जो) (प्रति अनीकेषु) प्रतिपक्ष में (अवस्थिताः) खड़े हैं (न) नहीं (रहेंगे)

अनुवाद

आदरणीय यमराज बोले, मैं यमराज हूँ। संसार के लोगों को मृत्यु देना मेरा काम है। इस संसार को सुरक्षित रखने के लिए मैं संसार के अहंकारी लोगों का विनाश करता हूँ। तुम्हारे बिना भी भविष्य में यह सारे सैनिक जो प्रतिपक्ष में खड़े हैं नहीं रहेंगे।

नोट

भगवान शब्द का अर्थ जानने के लिए नोट नं. N 10 पढ़िये।