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अध्याय 11 ,श्लोक 36



श्लोक

अर्जुन उवाच स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घा ||36||

स्थाने हृषीक-ईश तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यति अनुरज्यते च । रक्षांसि भीतानि दिशः द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्ध-सङ्घाः ।। ३६ ।।

शब्दार्थ

(हृषीकेश ) श्री कृष्ण के (स्थाने) स्थान से (ईश) (अपना तेज दिखाने वाले) हे ईश्वर (तव) आपकी (प्रकीर्त्या) महिमा से ( जगत ) सारा जगत (अनुरज्यते) खुश हो रहा है (प्रहृष्यति ) और आनंदित हो रहा है। (च) और र) राक्षस (भीतानि) अलग अलग (दिशः) दिशाओं में (द्रवन्ति) भाग रहे हैं (च) और (सर्वे) सारे (सिद्ध) सिद्ध पुरुषों के (सघाः) समुदाय (नमस्यन्ति) नमस्कार कर रहे हैं।

अनुवाद

श्री कृष्ण के स्थान से (अपना तेज दिखाने वाले) हे ईश्वर, आपकी महिमा से सारा जगत खुश हो रहा है, और आनंदित हो रहा है और राक्षस अलग अलग दिशाओं में भाग रहे हैं, और सारे सिद्ध पुरुषों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।