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अध्याय 11 ,श्लोक 37



श्लोक

कस्माच्च ते ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।
न नमेरन्महात्मन् गरीयसे अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत् ||37||

कस्मात् च ते न नेमरन् महा-आत्मन् गरीयसे ब्रह्मणः अपि आदि-कत्रे । अनन्त देव-ईश जगत निवास त्वम् अक्षरम् सतअसत् तत् परम् यत् ।। ३७ ।।

शब्दार्थ

(गरीयसे) (हे ईश्वर आप) कल्पना से भी परे हो। (ब्राह्मण) ब्रह्मा (अपि) से भी ( आदि कर्त्रे) पहले के सृष्टि का निर्माण करने वाले हो (अनन्त) आप अनंत हो । (देव ईश) देवताओं के ईश्वर हो (जगत् निवास) जगत को सहारा देने वाले हो (अक्षरम् ) आप अविनाशी ( अमर / शाश्वत) हो ( सतअसत) आप उस अविनाशी अन्य लोक और इस नाशवान पृथ्वी (हे ईश्वर आप) वायु, यमराज, अग्नि, पानी, चन्द्रमा और सारे मनुष्यों के स्वामी हैं। (हे लोक (तत-परम-यत) और जो कुछ इसके परे है ( उन सबके ईश्वर हो) (कस्मात) (तो) क्यों (न) न (ते) आपको (नेमरन्) नमस्कार करे (महा-आत्मना) महापुरुष (च) भी।

अनुवाद

(हे ईश्वर आप), कल्पना से भी परे हो । ब्रह्मा से भी पहले के सृष्टि का निर्माण करने वाले हो । आप अनंत हो। देवताओं के ईश्वर हो । जगत को सहारा देने वाले हो। आप अविनाशी (अमर/शाश्वत) हो। आप उस अविनाशी अन्य लोक और इस नाशवान पृथ्वी लोक और जो कुछ इसके परे है (उन सबके ईश्वर हो) । (तो) क्यों न आपको नमस्कार करे महापुरुष भी।

नोट

ईश्वर वह है जिसके सिवा कोई पूज्य प्रभु नहीं, वह हमेशा जीवित रहने वाला है, सबको सँभालने और कायम रखने वाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा। उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है। (पवित्र कुरआन २.२५५)