Home Chapters About



अध्याय 11 ,श्लोक 46



श्लोक

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते॥46॥

किरीटिनम् गदिनम् चक्रहस्तम् इच्छामि त्वाम् द्रष्टुम् अहम् तथा एव तेन-एव रुपेण चतुःभुजेन सहस्र बाहो भव विश्व मूर्ते ।।४६ ।।

शब्दार्थ

(अहम) (हे ईश्वर) मैं (त्वम्) आपकी (किरीटिनम्) मुकुट के समान चमकदार (गदिनम् ) धूमकेतु (चक्रहस्तम्) घूमती (आकाशगंगा) (तथा) और (तेन) आपकी (रुपेण ) महान रचनाएँ ( एवं) जैसे कि (चतुःभुजेन) चार बाहों वाले देवता (सहस्र बाहो) हजार बाहों वाले देवता (भी देख चाहता) (विश्व) (हे) ब्रह्माण्ड को ( भव ) अस्तित्व और (भूतों) रुप देने वाले (ईश्वर मुझ पर कृपा करें ) ।

अनुवाद

(हे ईश्वर) मैं आप की मुकुट के समान चमकदार धूमकेतु, घूमती आकाशगंगा और आपकी महान रचनाएँ, जैसे कि चार बाहों वाले देवता हजार बाहों वाले देवताओं को (भी देखना चाहता हूँ। हे ब्रह्माण्ड को अस्तित्व और रूप देने वाले (ईश्वर मुझ पर कृपा करें ) ।