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अध्याय 12 ,श्लोक 10



श्लोक

अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव ।
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ॥

अभ्यासे अपि असमर्थः असि मत कर्म परमः भव। मत- अर्थम् अपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिम् अवाप्स्यसि ।।१०।।

शब्दार्थ

(अभ्यासे) (यदि तुम) वेदों के सीखने में (अपि) भी (असमर्थ) असमर्थ (असि) हो (परम) (तो फिर मुझ ईश्वर को) सबसे महान मानते हुए (मतः) मेरे (आदेश के अनुसार ) (कर्म) कर्मों को (मत) (केवल) मेरे (अर्थम्) लिए ही (भव) (करने वाले) बनो (अपि) इस प्रकार (कर्माणि) कर्मों को (सिद्धिम् ) कुशलता से (कुर्वन्) करने से (तुम) (अवाप्स्यसि) (मुझे) पालोगे।

अनुवाद

(यदि तुम) वेदों के सीखने में भी असमर्थ हो (तो फिर मुझ ईश्वर को) सबसे महान मानते हुए मेरे (आदेशों के अनुसार) कर्मों को (केवल) मेरे लिए ही (करने वाले) बनो। इस प्रकार कर्मों को कुशलता से करने से (तुम) (मुझे) पालोगे।