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अध्याय 12 ,श्लोक 13



श्लोक

अर्जुन उवाच अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ॥

अद्वेष्टा सर्व भुतानाम् मैत्रः करुणः एव च ।
निर्ममः निरहंकारः समदुःख सुखः क्षमी ।। १३ ।।

शब्दार्थ

(ईश्वर ने कहा वह व्यक्ति मुझे प्रिय है जो) (एवं ) नि:संदेह (सर्व) सारे (भुतानाम्) प्राणियों से (अद्वेष्टा) द्वेष नहीं रखता (मैत्रः) (उनका) मित्र (करुणः) दया करने वाला (च) और (निर्ममः) कोमल हृदय वाला (निरहंकारः) अहंकार के बिना (क्षमी) क्षमा करने वाला (और) (दुःख सुख:) दुख: सुख में (सम) एक समान रहता है।

अनुवाद

(ईश्वर ने कहा वह व्यक्ति मुझे प्रिय है जो) नि:संदेह सारे प्राणियों से द्वेष नहीं रखता। (उनका) मित्र, दया करने वाला, और कोमल हृदय वाला, अहंकार के बिना, क्षमा करने वाला, (और) दुख: सुख में एक समान रहता है।