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अध्याय 12 ,श्लोक 14



श्लोक

संतुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढ़निश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥

सन्तुष्टः सततम् योगी यत-आत्मा दृढ निश्चयः ।
मयि अर्पित मनः बुद्धीः यः मत् भक्तः सः मे प्रियः ।।१४।।

शब्दार्थ

(सः) वह (व्यक्ति) (मे) मुझे (प्रियः) प्रिय है (जो) (संतुष्ट) संतुष्ट रहता है ( सततम् योगी) सदैव प्रार्थना में लगा रहता है। (यत-आत्मा) अपने मन पर नियंत्रण रखता है। (दृढ निश्चयः) दृढ निश्चय वाला है (यः) और जो (मनः बुद्धिः) मन और बुद्धि को (मयि) मुझे (अर्पित) अर्पित कर देता है (और जो) (मत् भक्त) केवल मेरी प्रार्थना करता है।

अनुवाद

वह (व्यक्ति) मुझे प्रिय है (जो) संतुष्ट रहता है । सदैव प्रार्थना में लगा रहता है। अपने मन पर नियंत्रण रखता है। दृढ निश्चय वाला है और जो मन और बुद्धि अर्पित कर देता है। (और जो) केवल मेरी प्रार्थना करता है।