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अध्याय 12 ,श्लोक 3



श्लोक

ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते। सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम् ॥

ये तु अक्षरम् अनिर्देश्यम् अव्यक्तम् पर्युपासते।
सर्वत्र गम् अचिन्त्यम् च कूट-स्थम् अचलम् ध्रुवम् ।।३।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (ये) वह जो (अचलम्) ध्यान को बिना भटकाए ( कूट-स्थम्) पर्वत के समान जमकर बैठते हैं (ध्रुवम्) और अपने नाक के छोर पर ध्यान लगाते हैं (अर्थात ईश्वर की याद में एकाग्र होते हैं) (च) और (पर्युपासते) (मेरी) प्रार्थना करते हैं (और मुझे) (अक्षरम् ) अविनाशी (अव्यक्तम्) न दिखाई देने वाला (बिना मूर्ति का) (सर्वत्र गम्) हर स्थान पर उपस्थित (अचिन्त्यम्) और कल्पना से उच्चतर (मानते हैं ) ।

अनुवाद

किन्तु वह जो ध्यान को बिना भटकाए पर्वत के समान जमकर बैठते हैं, और अपने नाक के छोर पर ध्यान लगाते है (अर्थात ईश्वर की याद में एकाग्र होते है), और (मेरी) प्रार्थना करते हैं, (और मुझे) अविनाशी, न दिखाई देने वाला (बिना मूर्ति का), हर स्थान पर उपस्थित सर्वव्यापी और कल्पना से उच्चतर (मानते हैं)।