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अध्याय 13 ,श्लोक 1



श्लोक

अर्जुन उवाच
प्रकृतिं पुरुषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च ।
एतद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव ॥1॥

अर्जुन उवाच, प्रकृतिं पुरूषं चैव क्षेत्रं क्षेत्रज्ञमेव च ।
एतृद्वेदितुमिच्छामि ज्ञानं ज्ञेयं च केशव ।। १ ।।

शब्दार्थ

(केशव) हे कृष्ण!(एव) निसंदेह (मैं) (प्रकृतिंम) भाग्य (पुरूषम) मनुष्य (क्षेत्रम) क्षेत्र (च) और (क्षेत्रज्ञम) क्षेत्र को जानने वाला (एव च) और (ज्ञानम) ज्ञान (च) और (ज्ञेयम) ज्ञान को जानने के उपदेश (एतत ) इन सभी को (वेदितुम् ) जानने का ( इच्छिमि) इच्छुक हूँ।

अनुवाद

हे कृष्ण! निसंदेह (मैं) भाग्य मनुष्य, क्षेत्र और क्षेत्र को जानने वाला और ज्ञान और ज्ञान को जानने के उपदेश, इन सभी को जानने का इच्छुक हूँ।