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अध्याय 13 ,श्लोक 13



श्लोक

ज्ञेयं यत्तत्वप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते।
अनादिमत्परं ब्रह्म (तत्) उस (ईश्वर के) (पाणि) हाथ (पादम्) पैर (सर्वतः ) हर दिशा में हैं (अर्थात उसकी पकड़ हर स्थान पर है) (अक्षि) आँखे (शिरः) सिर (मुखम्) और मुख है (अर्थात हर वस्तू पर उसकी नज़र है) (सतते) हर तरफ (लोके) ब्रह्मांण्ड में (श्रुति-मत्) उसके कान है (अर्थात वह हर एक कि सुनता है) (सर्वम्) सबकी (आवृत्य) रचना करके (निर्माण करके) (तिष्ठति) वह स्थित है। (हर चिज़ उसके नियंत्रण में है)

ज्ञेयम् यत् तत् प्रवक्ष्यामि यत् ज्ञात्वा अमृतम् अश्नुते । अनादि मत् परम् ब्रह्म न सत् सत् न असत् उच्यते ।। १३ ।।

शब्दार्थ

(यत) वह जो (ज्ञेयम्) जानने के योग्य है (तत) उस (के बारे में अब मैं) (प्रवक्ष्यामि ) बताउंगा (यत) जिसे (ज्ञात्वा) जानकर (अमृतम्) स्वर्ग (अनुते) मिलता है (मत् परम्) (जो) मेरा सब से महान दिव्य स्थान है (ब्रह्म) ईश्वर (न) न (सत) आध्यात्मिक (रुहानी / Spiritual है) (न) न (तत्) वह (असत्) भौतिक (मादी / Materialistic है) (उच्यते) कहते हैं ( वह ईश्वर) (अनादि) बिना आरंभ के है (अजन्मा है ) |

अनुवाद

(यत) वह जो (ज्ञेयम्) जानने के योग्य है (तत) उस (के बारे में अब मैं) (प्रवक्ष्यामि ) बताउंगा (यत) जिसे (ज्ञात्वा) जानकर (अमृतम्) स्वर्ग (अनुते) मिलता है (मत् परम्) (जो) मेरा सब से महान दिव्य स्थान है (ब्रह्म) ईश्वर (न) न (सत) आध्यात्मिक (रुहानी / Spiritual है) (न) न (तत्) वह (असत्) भौतिक (मादी / Materialistic है) (उच्यते) कहते हैं ( वह ईश्वर) (अनादि) बिना आरंभ के है (अजन्मा है ) |

नोट

यक्ष और देवता Spiritual या आध्यात्मिक है। मनुष्य भौतिक है। पदार्थ से बना है। ईश्वर इन दोनों जैसा नहीं है।