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अध्याय 13 ,श्लोक 17



श्लोक

अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् । भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च॥17॥

अविभक्तम् च भूतेषु विभक्तम् इव च स्थितम् । भूत-भर्तृ च तत् ज्ञेयम् ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ।।१७।।

शब्दार्थ

(वह ईश्वर) (अविभक्तम् ) अविभाजित (undivided) है (बटा हुआ नहीं है) (च) और (उसने) (भूतेषु ) सभी प्राणियों (विभक्तम् ) विभाजित किया है (इव च स्थितम्) और स्थित किया है (च) और (वह ही) (भूत भर्तृ) सभी प्राणियों को पालने वाला (च) और (तत्) वह (ईश्वर) (प्रभविष्णु) सम्पूर्ण प्राणियों को उत्पन्न करने वाला (ग्रसिष्णु) (और) संहार (मारने) वाला है।

अनुवाद

(वह ईश्वर) अविभाजित (undivided) है (बंटा हुआ नहीं है)। और (उसने) सभी प्राणियों को विभाजित किया है और स्थित किया है और (वह ही) सभी प्राणियों को पालने वाला और वह (ईश्वर) सम्पूर्ण प्राणियों को उत्पन्न करने वाला (और) संहार (मारने) वाला है।

नोट

श्लोक नं. ११.१३ में कहा गया है कि अर्जुन ने ईश्वर के तेज़ को देखा वह ऐसा था कि आकाश में हजारों सूर्य एक साथ हों। ईश्वर का यह अत्याधिक तीव्र तेज मनुष्य के सहनशक्ति से अधिक है। ईश्वर का यह तेज स्वर्ग से भी परे हमसे बहुत दूर। है। जैसे सोलार घड़ी या केलक्युलेटर सूर्य के प्रकाश से सक्रिय हो जाते हैं और काम करने लगते हैं इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड की प्रत्येक जीवित वस्तु ईश्वर के तेज के एक अंश से सक्रिय है और जीवित है। हमारा हृदय ईश्वर तेज़ के कारण धडकता है। इस कारण ईश्वर हमसे बहुत निकट है। उसका तेज बहुत सूक्ष्म है इस कारण हम अपने इद्रीयों से उसका आभास नहीं कर पाते हैं। ध्यान लगाकर, शान्त रहकर, ईश्वर की प्रार्थना करते हुए सुबह ब्रह्म मुहुर्त से पहले या उस समय ईश्वर के अस्तित्व का आभास किया जा सकता है। जब ईश्वर के अस्तित्व का आभास होता है तो मन और भी शान्त और बिना कारण भी प्रसन्न हो जाता है। पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा कि, हमने इंसान को पैदा किया और हम जानते है उन बातों को जो उसके दिल में आते हैं। हम उसकी गर्दन की रग (Vein) से भी ज्यादा उससे करीब है। (सूरह काफ-५०,आयत १६)