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अध्याय 13 ,श्लोक 18



श्लोक

ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते । ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥18॥

ज्योतिषाम् अपि तत् ज्योतिः तमसः परम् उच्यते । ज्ञानम् ज्ञेयम् ज्ञान-गम्यम् हदि सर्वस्य विष्ठितम् ।। १८ ।।

शब्दार्थ

(उच्यते) कहा जाता है की (तत ) वह ईश्वर (ज्योतिषाम् ) प्रकाश देने वालों की (ज्ञानियों का) (ज्योतिः) प्रकाश है (ज्ञान हैं) (तमसः परमः) वह (ईश्वर) सभी दोषों से मुक्त (ज्ञानम्) (ईश्वर को केवल) ज्ञान के द्वारा ही (ज्ञेयम्) जाना जा सकता है। (ज्ञान-गम्यम्) (उस ईश्वर को) हर चिज़ का ज्ञान है (कारण के) (सर्वस्य ) वह हर एक के (हृदि) हृदय में (विष्ठितम्) रहता है।

अनुवाद

कहा जाता है, कि वह ईश्वर प्रकाश देने वालों का (ज्ञानियों का) प्रकाश है (ज्ञान हैं)। वह (ईश्वर) सभी दोषों से मुक्त है ( ईश्वर को केवल) ज्ञान के द्वारा ही जाना जा सकता है। (उस ईश्वर को) हर चिज़ का ज्ञान है। (कारण के) वह हर एक के हृदय में रहता है । भाग्य क्या है?

नोट

समाज में ऐसी विचारधारा है कि प्राणियों को ब्रह्माजी उत्पन्न करते हैं। विष्णु जी पालते हैं और शंकरजी अन्त करते हैं। किन्तु ईश्वर ने इस श्लोक में इस विश्वास का खंडन किया है। (ईश्वर अविभाजित है,अर्थात उत्पन्न करने वाला, पालने वाला और मारने वाला है। यह तीन काम तीन ईश्वर नहीं करते, बल्कि एक ही ईश्वर तीनों काम करता है।) प्राणियों को विभाजित किया है का अर्थ है सभी प्राणी को अलग अलग काम पर लगाया है।कुत्ता सुरक्षा करता है, बैल खेत में काम करता है। घोडा सवारी के काम आता है इत्यादि। समाज में ऐसी विचारधारा है की प्राणीयों को ब्रह्माजी उत्पन्न करते है। विष्णु जी पालते हैं और शंकरजी अन्त करते हैं। किन्तु ईश्वर ने इस श्लोक में इस विश्वास का खंडन किया है। और कहा है की तीनों कर्म ईश्वर स्वयम् करते है| ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “ईश्वर ने किसी को अपनी औलाद (संतान) नहीं बनाया है। और कोई दूसरा खुदा उसके साथ नहीं है। अगर ऐसा होता तो हर खुदा अपनी सृष्टि को लेकर अलग हो जाता और फिर वे एक-दूसरे पर (लड़ने के लिए) चढ दोड़ते। पाक है ईश्वर उन बातों से जो ये लोग बनाते है।" (सूरे अल मोमिनून- २३, आयत ९१ )