Home Chapters About



अध्याय 13 ,श्लोक 2



श्लोक

श्रीभगवानुवाच
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते । एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥ 2 ॥

श्री भगवान उवाच, इदम् शरीरम् कौन्तेय क्षेत्रम् इति अभिधीयते ।
एतत् यः वेत्ति तम् प्राहुः क्षेत्र ज्ञः इति तत् विदः
।।२।।

शब्दार्थ

( श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने (श्री कृष्ण के माध्यम) से कहा (कौन्तेय) हे कुन्तिपुत्र (अर्जुन) (तत्) सत्य को (विदः) जानने वालो के (इति) अनुसार (इदम्) यह (शरीरम् ) शरीर (क्षेत्रम्) क्षेत्र (अभिधीयते) कहलाता है। (इति) इसी प्रकार ( एतत् ) इस (शरीर को ) (यः) जो (वेत्ति) जानता है (तम्) उसे (क्षेत्र ज्ञः) क्षेत्र को जानने वाला (प्राहुः) कहा जाता है।

अनुवाद

ईश्वर ने (श्री कृष्ण के माध्यम से) कहा, हे कुन्तिपुत्र (अर्जुन)! सत्य को जानने वालों के • अनुसार यह शरीर क्षेत्र कहलाता है। इसी प्रकार इस (शरीर को) जो जानता है उसे क्षेत्र को जानने वाला कहा जाता है।