Home Chapters About



अध्याय 13 ,श्लोक 21



श्लोक

श्रीभगवानुवाचकार्यकरणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।
पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते ॥21॥

कार्य कारण कर्तुत्वे हेतुः प्रकृतिः उच्यते ।
पुरुषः सुख दुःखानाम् भोक्तृत्वे हेतु: उच्यते
।।२१।।

शब्दार्थ

(उच्यते) ईश्वर ने कहा (कर्म) कर्म (कारण) कर्म करने के कारण (कर्तृत्वे) कर्मों को करने वाला (प्रकृतिः) (यह सब ) भाग्य (हेतु) के कारण होते हैं। (उच्यते) ईश्वर यह भी कह रहा है कि (पुरुषः) मनुष्य (सुख) सुख (दुखानाम्) दुःख (भोक्तृत्वे) का जो अनुभव करता है (हेतुः) उसका कारण भी भाग्य है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, कर्म करने के कारण, कर्मों को करने वाला (यह सब) भाग्य के कारण होते है। ईश्वर यह भी कह रहा है कि मनुष्य सुख-दुःख का जो अनुभव करता है उसका कारण भी भाग्य है।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, “क्या जिस चीज़ की मनुष्य कामना (इच्छा) करता है वह उसे अवश्य मिलती है? यह संसार और परलोक (मृत्यु के बाद का लोक) तो ईश्वर के ही हाथ में है।” (सूरह अन नजम ५३, आयत २४-२५) (अनुवाद फतेह मोहम्मद साहब) (अर्थात दोनों लोकों में जो मिलेगा ईश्वर के आदेश के अनुसार मिलेगा। हमारी इच्छाओं के अनुसार नहीं)