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अध्याय 13 ,श्लोक 25



श्लोक

ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना ।
अन्ये साङ्ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे ॥25॥

ध्यानेन आत्मनि पश्यन्ति केचित् आत्मानम् आत्मना । अन्ये साङ्ख्येन योगेन कर्म-योगेन च अपरे ।।।२५।।

शब्दार्थ

(केचित्) कुछ लोग (आत्मनि) स्वयं से (स्वयम) (ध्यानेन) विचार करके (अन्ये) दूसरे (कुछ लोग) (आत्मना) अपने मन और बुद्धि को (साङ्ख्येन) वेदों के ज्ञान से (योगित) जोड़कर (अर्थात ज्ञान द्वारा) (अन्ये ) कुछ दुसरे लोग (कर्म) अपने कर्मों को (योगेन) (ईश्वर के आदेश से) जोड़कर (अर्थात सत्यकर्म करके) (आत्मानाम्) ईश्वर को (पश्यानित ) पहचानते हैं (ईश्वर का अनुभव करते हैं। विवेक प्राप्त करते हैं )

अनुवाद

कुछ लोग स्वयं से (स्वयम्) विचार करके। दूसरे (कुछ लोग) अपने मन और बुद्धि को वेदों के ज्ञान से जोड़कर (अर्थात ज्ञान द्वारा)। कुछ दूसरे लोग अपने कर्मों को (ईश्वर आदेश से) जोड़कर (अर्थात सत्यकर्म करके), ईश्वर को पहचानते हैं (ईश्वर का अनुभव करते हैं। विवेक प्राप्त करते हैं)