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अध्याय 13 ,श्लोक 26



श्लोक

अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः॥26॥

अन्ये तु एवम् अजानन्तः श्रुत्वा अन्येभ्यः उपासते ।
ते अपि च अतितरन्ति एव मृत्युम् श्रुति परायणाः
।। २६ ।।

शब्दार्थ

(तु एवम् ) इस तरह ( इन तीनों प्रकार से) (अजानन्तः) (ईश्वर को) न जानते हुए (अन्ये) कुछ लोग (अन्येभ्यः) दुसरों से (ईश्वर के बारे में) (श्रुत्वा) सुनकर (उपासते) ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। (च) और (त) यह (श्रुति) सुनकर (परायणाः) कर्म करने वाले (अपि) भी (एवं) नि:संदेह (मृत्युम्) मृत्यु स्थान (नर्क) (अतितरन्ति) पार कर जाते हैं (स्वर्ग प्राप्त करते हैं ) ।

अनुवाद

इस तरह ( इन तीनों प्रकार से) (ईश्वर को) न जानते हुए कुछ लोग दूसरों से (ईश्वर के बारे में) सुनकर ईश्वर की प्रार्थना करते हैं और यह सुनकर कर्म करने वाले भी नि:संदेह मृत्यु स्थान (नर्क) पार कर जाते हैं (स्वर्ग प्राप्त करते हैं)।