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अध्याय 13 ,श्लोक 29



श्लोक

प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः ।
यः पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥30॥

समम् पश्यन् हि सर्वत्र समवस्थितम् ईश्वरम् ।
न हिनस्ति आत्मना आत्मानम् ततः याति पराम् गतिम्
।। २९ ।।

शब्दार्थ

(ईश्वरम्) (जब कोई व्यक्ति) ईश्वर के (समम्) समान प्राकृतिक नियमों को (सर्वत्र ) हर जगह (समवस्थितम्) समान रूप से लागू (पश्यन ) देखता है (तत) तब (हि) नि:संदेह (न) न (वह) (आत्मना) अपने मन को (आत्मानम्) (और न) अपनी आत्मा को (हिनस्ति) नष्ट करता है (पराम् गतिम्) (और वह जीवन के) सबसे महान लक्ष्य (अर्थात स्वर्ग को भी) (याति) पा लेता है।

अनुवाद

(जब कोई व्यक्ति) ईश्वर के समान प्राकृतिक नियमों को हर जगह समान रूप से लागू देखता है, तब नि:संदेह (वह) न अपने मन को (और न) अपनी आत्मा को नष्ट करता है। (और वह जीवन के) सबसे महान लक्ष्य (अर्थात स्वर्ग को भी) पा लेता है।