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अध्याय 13 ,श्लोक 3



श्लोक

श्रीभगवानुवाच
क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत । क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम ॥3॥

क्षेत्र-ज्ञम् च अपि माम् विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत । क्षेत्रक्षेत्र ज्ञयोः ज्ञानम् यत तत् ज्ञानम् मतम् मम ।। ३ ।।

शब्दार्थ

(भारत) हे भारत (अर्जुन) (अपि) नि:संदेह (सर्व) सारे (क्षेत्रेषु) शरीरों (का निर्माता) (च) और (क्षेत्र) शरीर को (ज्ञान) जानने वाला (माम) मुझे (ही) (विद्धि) जानो (मम्) मेरे (मतम्) आदेश के अनुसार (क्षेत्र) शरीर (मनुष्य) (क्षेत्र-ज्ञयोः) (और) शरीर को जानने वाले (ईश्वर का) (यत्) (अवतारित किया हुआ) जो (ज्ञानम्) ज्ञान

अनुवाद

हे भारत (अर्जुन)! नि:संदेह सारे शरीरों (का निर्माता), और शरीर को जानने वाला मुझे (ही) जानो। मेरे आदेश के अनुसार शरीर ( मनुष्य) (और) शरीर को जानने वाले (ईश्वर का)