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अध्याय 13 ,श्लोक 30



श्लोक

प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः ।
यः पश्यति तथात्मानमकर्तारं स पश्यति ॥30॥

प्रकृत्या एव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः। यः पश्यति तथा आत्मनम् अकर्तारम् सः पश्यति ।।३०।।

शब्दार्थ

(यः) वह जो ( पश्यति) यह देखता है कि (सर्वश) सारे (कर्माणि) काम या कर्म (प्रकृत्या ) भाग्य से (ईश्वर के आदेश से ही) (क्रियमाणानि) किए जाते हैं (तथा) और (वह अनुभव करता है कि) (आत्मनम् ) वह स्वयम् (अकर्तारम्) कुछ नहीं करता है ( एव च) तब नि:संदेह (सः) वह (पश्यति) विवेक वाला है। (ईश्वर को पहचानने वाला है)

अनुवाद

वह जो यह देखता है कि सारे कर्म भाग्य से (ईश्वर के आदेश से ही) किए जाते हैं और (वह अनुभव करता है कि) वह स्वयम कुछ नहीं करता है। तब निःसंदेह, वह विवेक वाला है। (ईश्वर को पहचानने वाला है)