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अध्याय 13 ,श्लोक 31



श्लोक

यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति ।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा ॥ 31॥

यदा भूत पृथक भावम् एक-स्थम् अनुपश्यति ।
ततः एव च विस्तारम् ब्रह्म सम्पद्यते तदा
।। ३१ ।।

शब्दार्थ

( यदा) जब कोई ( पृथक भावम्) अलग अलग स्वभाव के (भूत) प्राणियों को (च) और (विस्तारम्) इस फैलते हुए ब्रह्माण्ड को (एक) एक (ईश्वर से) (स्थम्) स्थित ( अनुपश्यति ) देखता है (तदा) तब (ततः) वह (एव) नि:संदेह (ब्रह्म) ईश्वर को (सम्पद्यते) पा लेता है।

अनुवाद

जब कोई अलग अलग स्वभाव के प्राणियों को और इस फैलते हुए ब्रह्माण्ड को एक (ईश्वर से) स्थित देखता है, तब वह नि:संदेह ईश्वर को पा लेता है। नोट: वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्माण्ड फैल रहा है।