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अध्याय 13 ,श्लोक 4



श्लोक

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् । स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु ॥ 4 ॥

तत् क्षेत्रम् यत् च यादृक च यत् विकारि यतः च
यत् ।
सः च यः यत् प्रभावः च तत् समासेन मे शृणु
॥४॥

शब्दार्थ

(ईश्वर ने कहा,) (तत क्षेत्रम् यत् च) और वह जो शरीर (है वह क्या है) (यादृक च यत्) और उसके गुण (क्या है?) (विकारि यत च यत उन) उनमें किन कारणों से बदलाव होता है और क्या होता है? (सः च यः यत् प्रभावः) और वह कौन है जिसका इन पर प्रभाव होता है। (च तत् समासेन मे शृणु) यह मुझसे सुनो और संक्षिप्त में।

अनुवाद

(ईश्वर ने कहा,) और वह जो शरीर ( है वह क्या है) और उसके गुण (क्या है?) उनमें किन कारणों से बदलाव होता है और क्या होता है? और वह कौन है जिसका इन पर प्रभाव होता है। यह मुझसे सुनो और संक्षिप्त में।