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अध्याय 14 ,श्लोक 2



श्लोक

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः ।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥2॥

इदम् ज्ञानम् उपाश्रित्य मम साधर्म्यम् आगताः ।
सर्गे अपि न उपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ॥२॥

शब्दार्थ

(इदम्) इस (ज्ञानम्) ज्ञान के (उपाश्रित्य) सहारे ( जीवन व्यतीत करने से व्यक्ति) (मम्) मेरी (साधर्म्यम्) (इच्छा के अनुसार) स्वभाव (को) (आगताः) प्राप्त कर लेता है। (च) और (फिर) (न) न (ही) (सर्गे) (इस) संसार में (न) (और) न (ही) (प्रलये) प्रलय के दिन (उपजायन्ते) फिर से जीवित किए जाने के बाद (अपि) भी (व्यथन्ति) उसे किसी प्रकार की कठिनाई होगी।

अनुवाद

इस ज्ञान के सहारे (जीवन व्यतीत करने से व्यक्ति) ) मेरी (इच्छा के अनुसार) स्वभाव (को) प्राप्त कर लेता है। और (फिर) न (ही) (इस) संसार में (और) न (ही) प्रलय के दिन फिर से जीवित किए जाने के बाद भी उसे किसी प्रकार की कठिनाई होगी।

नोट

(नालन्दा विशाल शब्द सागर पेज नं. १६१ अनुसार उपजना का अर्थ है उत्पन्न होना। श्लोक नं. १५.८, १५.९ और १५.१० कुरआन के अनुसार, प्रलय के दिन ईश्वर सबको फिर जीवित करके कर्मों का हिसाब लेगा।)