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अध्याय 14 ,श्लोक 24



श्लोक

समदुःखसुखः स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चनः ।
तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः ।।24।।

सम दुःख सुखः स्व-स्थः सम लोष्ट अश्म कान्चनः । तुल्य प्रिय अप्रियः धीर: तुल्य निन्दा आत्म संतुष्टि । ॥२४॥

शब्दार्थ

(अतीत हुआ व्यक्ति) (सुख:) सुख (दुःख) दु:ख (में) (सम) एक समान रहता है। (स्व-स्थ) वह अपने आपको वश में रखता है (लोष्ट) मिट्टी का ठेला (अश्म) पत्थर, (कान्चन) सोने का टुकड़ा (सम) (उसके लिए) एक समान है (प्रिय) मित्र और रिश्तेदारों (और) (अप्रियः) वह लोग जो उसे पसंद नहीं है (तुल्य) सबसे एक समान व्यवहार करता है। (निन्दा) उसकी निन्दा करने पर (आत्म संतुष्टि) उसकी प्रशंसा करने पर ( धीर:) धीरज रखता है (तुल्य) और एक समान रहता है। है।

अनुवाद

(अतीत हुआ व्यक्ति) सुख-दुःख (में) एक समान रहता है। वह अपने आपको वश में रखता है। मिट्टी का ढ़ेला, पत्थर, सोने का टुकड़ा (उसके लिए) एक समान है। मित्र और रिश्तेदारों, (और) वह लोग जो उसे पसंद नहीं है सबसे एक समान व्यवहार करता है। उसकी निन्दा करने पर या उसकी प्रशंसा करने पर धीरज रखता है, और एक समान रहता है।