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अध्याय 15 ,श्लोक 13



श्लोक

विद्धि गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः रसात्मकः ॥13॥

गाम् आविश्य च भूतानि धारयामि अहम् ओजसा ।
पुष्णामि च औषधीः सर्वाः सोमः भूत्वा रस आत्मकः।। १३ ।।

शब्दार्थ

(अहम्) मैं (गाम्) ग्रह (धरती) में (आविश्य) प्रवेश करके (भूतानि) प्राणियों की (धारयामि) रक्षा करता हूँ (च) और (ओजसा) अपनी शक्तीयों से (पुष्णामि) उनका पालन-पोषण करता हूँ (च) और (सर्व) सारे (औषधि) जड़ी बूटियों को (सोम:) चांद (भूत्वा ) बनकर (रस आत्मकः) जीवन का रस प्रदान करने वाला (अहम्) मैं हूँ।

अनुवाद

मैं धरती में प्रवेश करके प्राणियों की रक्षा करता हूँ और अपनी शक्तियों से उनका पालन-पोषण करता हूँ और सारी जड़ी-बूटियों को चांद बनकर जीवन का रस प्रदान करने वाला मैं हूँ।