अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य विषयप्रवालाः ।
शाखा गुणप्रवृद्धा अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके ॥2॥
अधः च उर्ध्वम् प्रसुताः तस्य शाखाः गुण प्रवृद्धाः विषय प्रवालाः ।
अधःच मूलानि अनुसन्ततानि कर्म अनुबन्धीनि मनुष्या-लोके ।। २ ।।
(तस्य) उसकी (शाखा:) (छोटी) शाखें (गुण) गुण हैं (जो) (उर्ध्वम्) ऊपर की ओर (च) और (अध:) नीचे की ओर (प्रसृता) बढ़ती है (प्रवाला:) (उसकी) कोंपले (टेहनियां) (विषय) मन को आनंद देने वाली वस्तु हैं (अध) (जो) नीचे की ओर (प्रवृद्धा) बढ़ती है (च) और (मुलानि) (उसकी शाखाओं से निकलने वाली) जड़ें (कर्म) कर्म हैं (अनुसन्ततानि) जो निरंतर बढ़ती रहती हैं (मनुष्य) (और) मनुष्य को (लोके) (इस) संसार (से) (अनुबन्धीनि) बाँधे रहती हैं।
अनुवादउसकी (छोटी) शाखें गुण हैं (जो) ऊपर की ओर और नीचे की ओर बढ़ती है। (उसकी) कोंपले (टेहनियां) मन को आनंद देने वाली वस्तु हैं, (जो) नीचे की ओर बढ़ती हैं और (उसकी शाखाओं से निकलने वाली) जड़ें कर्म हैं जो निरंतर बढ़ती रहती है, (और) मनुष्य को (इस) संसार (से) बाँधे रहती हैं।
नोटबरगद की शाखों से जड़ निकलती हैं और धरती की ओर बढ़ती हैं और धरती पर मज़बूती के साथ जम जाती हैं। इसी प्रकार मनुष्य भी संसार से मज़बूती के साथ बंधा रहता है।