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अध्याय 15 ,श्लोक 8



श्लोक

शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात् ॥8॥

शरीयम् यत् अवाप्नोति यत् च अपि उत्क्रामति ईश्वरः । गृहीत्वा एतानि संयाति वायुः गन्धान् इव आशयात् ॥ ८ ॥

शब्दार्थ

यत्) (मनुष्य) जो (शरीरम्) शरीर (उत्क्रामति) (मृत्यु के समय ) छोड़ जाता है (अपि) नि:संदेह (अवाप्नोति) (प्रलय के दिन) दोबारा प्राप्त करता है (एतानि) वह (शरीर) (यत्) जिस (से) (संयाति) (आत्मा) दूर हो जाती है (ईश्वर) ईश्वर (गृहीत्वा) (उसे) लाता है (कर्मों का हिसाब लेने के स्थान पर इसी तरह) (इव) जिस तरह (वायु:) वायु (आशयात्) स्थानांतरण करती है (गन्धान्) सुगंध का।

अनुवाद

(मनुष्य) जो शरीर मृत्यु के समय) छोड़ जाता है, नि:संदेह (प्रलय के दिन उसे) दोबारा प्राप्त करता है। वह (शरीर) जिस (से) (आत्मा) दूर हो जाती है, ईश्वर (उसे) लाता है (कर्मों का हिसाब लेने के स्थान पर इसी तरह) जिस तरह वायु स्थानांतरण करती है सुगंध का।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “वही (ईश्वर) है जिसने तुम्हें जिंदगी प्रदान की है। वही तुमको मौत देता है और वही फिर तुमको जिन्दा करेगा। सच यह है कि इन्सान बड़ा ही 'सत्य' से मुँह फेरने वाला है।" (सूरह अल-हज- २२, आयत ६६) "कयामत (प्रलय) के दिन सब मनुष्य अकेले अकेले ईश्वर के सामने हाजिर (उपस्थित) होंगे।” (सूरह मरयम-१९, आयत ९५)