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अध्याय 16 ,श्लोक 15



श्लोक

आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः 115॥

आढ्यः अभिजन-वान् अस्मि कः अन्यः अस्ति सदृशः मया । यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्ये इति अज्ञान विमोहिताः ।। १५ ।।

शब्दार्थ

(अज्ञान) अज्ञानता (के कारण) (विमोहिता) गुमराह होकर (इति) (वह) इस तरह (विचार करता हैं की) (आढ्य:) (में) धनवान (अभिजन-वान्) सम्बन्धियों से घिरा (अस्मि) हूँ (मया) मेरे द्वारा ही (यक्ष्ये) (बड़े-बड़े) ईश्वर की प्रसन्नता वाले कार्य किये जाते हैं। (दास्यामि) में बहुत अधिक दान देने वाला हूँ (मोदिष्ये) मैं मौजमस्ती करने वाला हूँ (सदृश:) अब बताओ कि मेरे समान (अन्य:) दूसरा (क:) कौन (अस्ति) है?

अनुवाद

अज्ञानता के कारण, गुमराह होकर (वह) इस तरह विचार करता है कि, मैं धनवान सम्बन्धियों से घिरा हूँ। मेरे द्वारा ही बड़े-बड़े ईश्वर की प्रसन्नता वाले कार्य किये जाते हैं। में बहुत अधिक दान देने वाला हूँ। मैं मौजमस्ती करने वाला है? अब बताओ कि मेरे समान दूसरा कौन है?