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अध्याय 16 ,श्लोक 22



श्लोक

एतैर्विमुक्त: कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः |
आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम् ||22||

एतैः विमुक्तः कौन्तेय तमः-द्वारैः त्रिभिः नरः ।
आचरति आत्मनः श्रेयः ततः याति पराम् गतिम् ||२२||

शब्दार्थ

(कौन्तेय) हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन) (ना) जो मनुष्य (एतैः) इन (त्रिभिः) तीनों (भावनाओं से) (विमुक्तः) मुक्ति पा लेता है (तमः) (जो की अज्ञानता के) (द्वारै:) द्वार हैं (आचरति) और अपने आचरण को ऊपर उठाता है (वह) (आत्मनः) ईश्वर की (श्रेय:) शरण ( प्राप्त कर लेता है) (ततः) इस तरह (वह) (पराम् गतिम्) सबसे महान लक्ष्य (अर्थात स्वर्ग) (याति) प्राप्त कर लेता है।

अनुवाद

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! जो मनुष्य इन तीनों भावनाओं से मुक्ति पा लेता है, जो की अज्ञानता के द्वार हैं, और अपने आचरण को ऊपर उठाता है, वह ईश्वर की शरण प्राप्त कर लेता है। इस तरह वह सबसे महान लक्ष्य अर्थात स्वर्ग प्राप्त कर लेता है।

नोट