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अध्याय 17 ,श्लोक 13



श्लोक

विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ||13||

विधि-हीनम् असृष्ट- अन्नम् मन्त्र-हीनम् अदक्षिणम् ।
श्रद्धा विरहितम् यज्ञम् तामसम् परिचक्षते ।।१३।।

शब्दार्थ

( यज्ञम् ) वह यज्ञ (विधि-हीनम्) जो धार्मिक नियमों को न मानते हुए (असृष्ट-अन्नम्) बिना अन्न दान के ( मन्त्र हीनम्) बिना मन्त्रों के पढ़े (अदक्षिणम्) बिना दक्षिणा दिए (किए जाते हैं) (तामसम्) यह कर्म तमो गुण से प्रेरीत है (परिचक्षते) ऐसा माना जाता है।

अनुवाद

वह यज्ञ जो धार्मिक नियमों को न मानते हुए, बिना अन्न दान के, बिना मन्त्रों के पढ़े, बिना दक्षिणा दिए ( किए जाते हैं) यह कर्म तमो गुण से प्रेरित है, ऐसा माना जाता है।