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अध्याय 17 ,श्लोक 19



श्लोक

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः ।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम् ॥19॥

मूढ ग्राहेण आत्मनः यत् पीडया क्रियते तपः ।
परस्य उत्सादन- अर्थम् वा तत् तामसम् उदाहृतम् ।।१९।।

शब्दार्थ

(यत्) जो (तपः) तप (मूढ ग्राहेण) मूर्खता से (आत्मनः) अपने आपको (पीडया) पीड़ा देकर (वा) अथवा (परस्य) दूसरों को (उत्सादन अर्थम्) कष्ट देने के लिये (क्रियते) किया जाता है (तत) वह (तपः) (तामसम्) तमो गुण से प्रेरित (उदाहृतम्) कहा गया है।

अनुवाद

जो तप मूर्खता से, अपने आपको पीड़ा देकर, अथवा दूसरों को कष्ट देने के लिये किया जाता है, वह (तप) तमो गुण से प्रेरित कहा गया है।