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अध्याय 17 ,श्लोक 22



श्लोक

अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते । असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्॥22॥

अदेश काले यत् दानम् अपात्रेभ्यः च दीयते ।
असत-कृतम् अवज्ञातम् तत् तामसम् उदाहृतम्||२२||

शब्दार्थ

(अदेश) (जो दान) गलत स्थान पर ( काले ) गलत समय पर (अपात्रेभ्य:) ऐसा व्यक्ति जो दान लेने के योग्य नहीं (ऐसे को दान दिया जाए) या (असत-कृतम्) गलत काम के लिए (च) और (अवज्ञातम्) (निर्धन को) अपमानित करते हुए (यत्) जो (दानम) दान (दीयते) दिया जाए (तत्) वह (दान) (तामसम्) तमो गुण से प्रेरित समझो।

अनुवाद

जो दान गलत स्थान पर, गलत समय पर, ऐसा व्यक्ति जो दान लेने के योग्य नहीं ऐसे को दान दिया जाए। या गलत काम के लिए, या निर्धन को अपमानित करते हुए जो दान दिया जाए, वह दान तमो गुण से प्रेरित समझो।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने जकात (दान) निम्नलिखित आठ उद्देश के लिए खर्च करने का आदेश इस तरह दिया है। "जकात (दान) तो वास्तव में गरीबों, मुहताजों के लिए है, और उन कर्मचारियों के वेतन के लिए जो इस (दान को जमा करने और खर्च करने) पर लगे हों, और उनके लिए जिनके हृदय में ईश्वर की श्रद्धा उत्पन्न करना हो, और गुलामों (दासों) को गुलामी से मुक्त कराने के लिए, और जो कर्ज में फंस गया हो उसका कर्ज अदा करने के लिए, और ईश्वर के मार्ग में सत्कर्मों के लिए और यात्रियों की सहायता के लिए है। यह ईश्वर के आदेश हैं। और ईश्वर जानने वाला और तत्त्वदर्शी है।" (सूरह अल तौबा ९, आयत ६०)