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अध्याय 17 ,श्लोक 24



श्लोक

तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपः क्रियाः ।
प्रवर्तन्ते विधानोक्तः सततं ब्रह्मवादिनाम् ॥24॥

तस्मात् ॐ इति उदाहृत्य यज्ञ दान तपः क्रियाः ।
प्रवर्तन्ते विधान-उक्ताः सततम् ब्रह्मवादिनाम् ।।२४।।

शब्दार्थ

(तस्मात) इसलिए (उक्ता:) (ईश्वर के) कहे हुए (विधान) आदेश के अनुसार (ब्रह्म) एक ईश्वर की (वादिनाम्) प्रार्थना करने वाले (इति) इस तरह (यज्ञ) यज्ञ (दान) दान (तपः क्रिया:) तपः क्रिया के (प्रवर्तन्ते) आरम्भ में (सततम्) सदैव (ॐ) ॐ (उदाहृत्य) कहते है।

अनुवाद

इसलिए ईश्वर के कहे हुए आदेश के अनुसार, एक ईश्वर की प्रार्थना करने वाले, यज्ञ, दान, तप और क्रिया के आरम्भ में सदैव ॐ कहते