Home Chapters About



अध्याय 17 ,श्लोक 5



श्लोक

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः । दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः ||5||

अ-शास्त्र विहितम् घोरम् तप्यन्ते ये तपः जनाः।
दम्भ अहकार संयुक्ताः काम राग बल अन्विताः ।। ५ ।।

शब्दार्थ

(दम्भ) पाखंड, कपट (अहंकार) अहंकार (संयुक्ता: काम) अपनी इच्छा पूर्ति में व्यस्त (राग बल) क्रोध और सत्ता से (अन्विता:) प्रभावित होकर (ये) वह जो (अशास्त्र विहितम्) शास्त्रों को न मानते हुए जीवन व्यतीत करता है। न वह (तपः जनाः) तपः (ईश्वर की प्रार्थना करने वाले ) लोगों को (घोरम् तप्यन्ते) घोर यातनाएं देते हैं।

अनुवाद

पाखंड, कपट, अहंकार, अपनी इच्छा पूर्ति में व्यस्त, क्रोध और सत्ता से प्रभावित होकर वह जो शास्त्रों को न मानते हुए जीवन व्यतीत करता है। वह तप: (ईश्वर की प्रार्थना करने वाले) लोगों को घोर यातनाएं देते हैं।

नोट

जो लोग ईश्वर को नहीं मानते और केवल कल्पना के अनुसार धर्म का अनुसरण करते हैं, वे ईश्वर में श्रद्धा रखने वालों पर अत्याचार करते है जिन पर अत्याचार हुआ उनके बारे में निम्नलिखित श्लोक हैं। “वे (ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले) लोग अनुचित रुप और बिना कारण के अपने घरों से निकाल दिए गए, केवल इसलिए कि वे कहते हैं हमारा पालनहार एक ईश्वर है यदि ईश्वर लोगों को एक दूसरे से हटाता न रहता तो संतो, सन्यासियों आदि के आश्रम और ईसाईयों के गिरजे और यहूदियों के उपासना- गृह और मस्जिदें, जिनमें ईश्वर का बहुत नाम लिया जाता है, सब ढा दी जाती । निश्चय ही ईश्वर उसकी सहायता करेगा जो ईश्वर की सहायता करेगा बेसहारा को सहारा देने और समाज में सुख शांति रखने में निस्सदेह ईश्वर बलवान और प्रभुत्वशाली है।” (सूरह अल हज्ज- २२, आयत ४०)