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अध्याय 18 ,श्लोक 14



श्लोक

अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् । विविधाश्च पृथक्वेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्॥14॥

अधिष्ठानम् तथा कर्ता करणम् च पृथक-विधम् । विविधाः च पृथक चेष्टाः दैवम् च एव अत्र पन्चमम्
।। १४ ।।

शब्दार्थ

(अधिष्ठानम्) स्थान (तथा) और (कर्ता) कर्म करने वाला व्यक्ति (च) और (पृथक-विधम्) विभिन्न प्रकार के (कारण) कारण (स्थिती / Situation) (च) और (विविधाः पृथक) विभिन्न प्रकार के (चेष्टा) प्रयास (च) और ( देवम) ईश्वर की इच्छा (आज्ञा ) ( एवं ) नि:संदेह (अत्र पञ्चमम्) यह पांच (कर्म के सही होने के कारण हैं )

अनुवाद

स्थान, और कर्म करने वाला व्यक्ति, और विभिन्न प्रकार के कारण (स्थिती / Situation ) और विभिन्न प्रकार के प्रयास और ईश्वर की इच्छा (आज्ञा)। नि:संदेह, यह पांच (कर्म के सही होने के कारण हैं)