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अध्याय 18 ,श्लोक 17



श्लोक

यस्य नाहङ्कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते । हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते ।। 17।।

यस्य अहङ्कतः भावः बुद्धिः यस्य न लिप्यते । हत्वा अपि सः इमान् लोकान् न हन्ति न निबध्यते ।।१७ ।।

शब्दार्थ

(यस्य) जिसके (भाव:) स्वभाव में (अहङ्कत:) अहंकार (न) नहीं है (यस्य) जिसकी (बुद्धि:) बुद्धि: (लिप्यते) (संसार में उन्नती करने में ) लगी हुई (न) नहीं है (इमान् लोकान्) इस धरती पर (अपि सः) अगर वह (हत्वा) हत्या भी करे तो (न हन्ति) न उसने हत्या की (ऐसा माना जाएगा) (न) (और) न (निबध्यते) उसके कर्मों की ईश्वर के पास पकड़ होगी।

अनुवाद

जिसके स्वभाव में अहंकार नहीं है, जिसकी बुद्धि संसार में उन्नति करने में लगी हुई नहीं है। इस धरती पर यदि वह हत्या भी करे तो न उसने हत्या की ऐसा माना जाएगा, और न उसके कर्मों की ईश्वर के पास पकड़ होगी।

नोट

(नोट: निबध्यते का अर्थ समझने के लिए नोट N ११ पढ़े।)