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अध्याय 18 ,श्लोक 21



श्लोक

पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान् ।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ||21||

पृथक्त्वेन तु यत् ज्ञानम् नाना-भावान् पृथक विधान ।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तत् ज्ञानम् विद्धि राजसम् ।।२१।।

शब्दार्थ

(तु) परंतु (यत) वह (ज्ञानम्) ज्ञान (जिसके द्वारा) (पृथक) विभिन्न (विधान) प्रकार के (सर्वेषु) सारे (भुतेषु) प्राणी ( पृथक्त्वेन) विभिन्न प्रकार के (तत्) अलग अलग (ईश्वरों द्वारा) (भावान्) निर्माण किए गए हैं (वेत्ति) ऐसा समझा जाता है। (तत) उस (ज्ञानम्) ज्ञान को (राजसम्) रजो गुण से प्रेरित (विद्धि) समझो।

अनुवाद

परंतु वह ज्ञान जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार के सारे प्राणी, विभिन्न प्रकार के अलग अलग (ईश्वरों द्वारा) निर्माण किए गए हैं ऐसा समझा हैं गुण जाता है। उस ज्ञान को रजो से प्रेरित समझो।