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अध्याय 18 ,श्लोक 24



श्लोक

यत्तु कामेप्सुना कर्म साहङ्कारेण वा पुनः । क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम्॥24॥

यत् तु काम-ईप्सुना कर्म स अहङ्कारेण वा पुनः । क्रियते बहुल आसायम् तत् राजसम् उदाहृतम् ।।२४।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (यत्) जो (कर्म) कर्म (काम-ईप्सुना) फल की अपेक्षा से (सअहङ्कारेण) अहंकार के साथ किया जाए (वा) या (पुन) बार बार (क्रियते) किया जाए (बहुल) बहुत अधिक (आसायम्) कष्ट (के साथ किया जाए) (तत) वह (कर्म) (राजसम्) रजो गुण से प्रेरित (उदाहृतम्) कहा जाएगा।

अनुवाद

किन्तु जो कर्म फल की अपेक्षा से, अहंकार के साथ किया जाए, या बार बार किया जाए, बहुत अधिक कष्ट के साथ किया जाए। वह (कर्म) रजो गुण से प्रेरित कहा जाएगा।