Home Chapters About



अध्याय 18 ,श्लोक 25



श्लोक

अनुबन्धं क्षयं हिंसामनवेक्ष्य च पौरुषम् । मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते।।25।।

अनुबन्धम् क्षयम् हिंसाम् अनपेक्ष्य च पौरुषम् । मोहात् आरभ्यते कर्म यत् तत् तामसम् उच्यते
।। २५ ।।

शब्दार्थ

अनुवाद

(यत्) जो (कर्म) कर्म (अनुबन्धम्) बिना धार्मिक नियम के (क्षयम्) विनाश (हिंसाम्) (और) हिंसा (के लिए) (पौरुषम्) अपनी क्षमता (च) और (अनवेक्ष्य) परिणाम को नजरअंदाज करके (मोहात्) किसी भ्रम में आकर (आरभ्यते) आरंभ किया जाए (तत्) उस (कर्म को) (तामसम्) तमो गुण से प्रेरित (उच्यते) कहा जाएगा।

नोट

जो कर्म बिना धार्मिक नियम के विनाश और हिंसा के लिए, अपनी क्षमता और परिणाम को नजरअंदाज करके, किसी भ्रम में आकर आरंभ किया जाए, उस (कर्म को ) तमो गुण से प्रेरित कहा जाएगा।