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अध्याय 18 ,श्लोक 30



श्लोक

प्रवत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये । बन्धं मोक्षं च या वेति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ॥30॥

प्रवृत्तिम् च निवृत्तिम् च कार्य अकार्ये भय अभये । बन्धम् मोक्षम् च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्विकी । ३० ।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे अर्जुन (च) जो (बुद्धिः) बुद्धि (वेत्ति) जानती है कि (प्रकृतिम्) (आचरण और कर्मों की) प्रवृत्ति (उन्नति ) क्या है? (च) और (निवृत्तिम्) गिरावट क्या है। (कार्य) सत्कर्म क्या है? (और) (अकार्ये) वह कर्म क्या है जो नहीं करना चाहिए (भय) (किस से और किन बातों से) ड़रना चाहिए। (अभये) (किससे और किन बातों से) नहीं डरना चाहिए। (बन्धम्) (ईश्वर के सामने प्रलय के दिन कौन से कर्म निरीक्षण के समय बांध देंगे) (मोक्षम्) और कौन से कर्म के आधार पर ईश्वर क्षमा करेगा (मुक्ति देगा) (स) वह (बुद्धि) (सात्विक) सात्विक गुण से प्रेरित कही जाएगी।

अनुवाद

हे अर्जुन, जो बुद्धि जानती है कि आचरण और कर्मों की प्रवृत्ति उन्नति क्या है? और गिरावट क्या है। सत्कर्म क्या है? और वह कर्म क्या है जो नहीं करना चाहिए। किससे और किन बातों से डरना चाहिए। किससे और किन बातों से नहीं डरना चाहिए। ईश्वर के सामने प्रलय के दिन कौन से कर्म निरीक्षण के समय बांध देंगे और कौन से कर्म के आधार पर ईश्वर क्षमा करेगा मुक्ति देगा। ऐसी वह बुद्धि सात्विक गुण से प्रेरित कही जाएगी।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, “अत: मेरे उन बन्दों को शुभ सूचना दे दो जो बात को ध्यान से सुनते हैं, फिर उस अच्छी बात का अनुपालन करते हैं। वही हैं जिन्हें ईश्वर ने मार्ग दिखाया है, और वही बुद्धि और समझ वाले हैं।” (सूरे अज़-जुमर- ३९, आयत-१८)