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अध्याय 18 ,श्लोक 31



श्लोक

यया धर्ममधर्मं च कार्य चाकार्यमेव च । अयथावत्प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी॥31॥

यया धर्मम् अधर्मम् च कार्यम् च अकार्यम् एरा
च। अयथावत् प्रजानाति बुद्धिः सा पार्थ राजसी ।।३१।।

शब्दार्थ

(बुद्धि) बुद्धि (यया) जो (अयथा वतः) ठीक तरह से नहीं (प्रजानाति) जानता (धर्मम) धर्म और (अधमर्म) अधर्म (को) (च) और (कार्यम) कर्तव्य (च) और (अकार्यम्) अकर्तव्य को (सा) वह (बुद्धि) (राजसी) रजो गुण से प्रेरित कही से जाएगी।

अनुवाद

बुद्धि जो ठीक तरह से नहीं जानता धर्म और अधर्म (को), और कर्तव्य और अकर्तव्य को, वह (बुद्धि) रजो गुण से प्रेरित कही जाएगी।