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अध्याय 18 ,श्लोक 35



श्लोक

यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च । न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ॥35॥

यया स्वप्नम् भयम् शोकम् विषादम् मदम् एव च।
न विमुन्वति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी ।। ३५ ।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (अर्जुन) (दुर्मेधा:) मूर्ख लोग (यया) जिस (दृढ संकल्प से) (स्वप्नम) बेबुनियाद कल्पना करना (भयम्) भय करना (शोकम् ) शोक करना (विषादम्) परेशान होना (च) और (मदम्) भ्रम में रहना (न) नहीं (विमुन्चति) छोडते। (एव) नि:संदेह (सा) वह (धृति) दृढ़ संकल्प (तामसी) तमो गुण से प्रेरित कहा जाएगा।

अनुवाद

हे पार्थ (अर्जुन), मूर्ख लोग, जिस दृढ़ संकल्प के साथ से बेबुनियाद कल्पना करना, भय करना, शोक करना, परेशान होना, और भ्रम में रहना नहीं छोडते । निःसंदेह वह दृढ़ संकल्प तमो गुण से प्रेरित कहा जाएगा।