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अध्याय 18 ,श्लोक 36



श्लोक

सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ । अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति || 36 ||

सुखम् तु इदानीम् त्रि-विधम् शृणु मे भरत- ऋषभ । अभ्यासात् रमते यत्र दुःख अन्तम् च निगच्छति
।। ३६ ।।

शब्दार्थ

(भरत-ऋषभ) हे भरत श्रेष्ठ (अर्जुन) (इदानीम् ) अब (मे) मुझसे (त्रि) तीन (विधम्) प्रकार के (सुखम्) सुख (के बारे में) (शृणु) सुनो (यत्र) (सबसे पहला ) यह (अभ्यासात्) वेदों का अध्ययन और उनमें सोच विचार (रमते) (जिसके कारण) प्रसन्नता (निगच्छति) मिलती है (च) और (दु:ख) दुखों का (अन्तम) अंत होता है।

अनुवाद

हे भरत श्रेष्ठ (अर्जुन)! अब मुझसे तीन प्रकार सुख के बारे में सुनो। सबसे पहला यह वेदों के का अध्ययन और उनमें सोच विचार है, जिसके कारण प्रसन्नता मिलती है, और दुखों का अंत होता है।