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अध्याय 18 ,श्लोक 4



श्लोक

निश्चयं श्रृणु में तत्र त्यागे भरतसत्तम । त्यागो हि पुरुषव्याघ्र त्रिविधः सम्प्रकीर्तितः ॥4॥

निश्चयम् शृणु ते तत्र त्यागे भरत-सत् तम् ।
त्यागः हि पुरुष व्याघ्र त्रि-विधः सम्प्रकीर्तितः||४||

शब्दार्थ

(भरत-सत्-तम) भारत में सबसे श्रेष्ठ (अर्जुन) (तत्र) अब (त्याग:) त्याग (के बारे में) (में) मेरा (ईश्वर का) (निश्चयम्) निर्णय (शृणु) सुनों (पुरुष) हे मनुष्यों में (व्याघ्र) सिंह (हि) नि:संदेह (त्रि) तीन (विध:) प्रकार के (त्याग) त्याग (सम्प्रकीर्तितः) (मेरे द्वारा) बताए गए हैं।

अनुवाद

भारत में सबसे श्रेष्ठ (अर्जुन)! अब त्याग के बारे में मेरा (ईश्वर का) निर्णय सुनों। हे मनुष्यों में सिंह (अर्जुन), नि:संदेह तीन प्रकार के त्याग मेरे द्वारा बताए गए हैं।