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अध्याय 18 ,श्लोक 54



श्लोक

ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति ।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्॥ 54॥

ब्रह्म-भूत प्रसन्न आत्मा न शोचति न काडक्षति । समः सर्वेषु भूतेषु मत् भक्तिम् लभते पराम् ।।५४।।

शब्दार्थ

(ब्रह्म-भूत) ईश्वर की प्रार्थना में लगे मनुष्य (प्रसन्न आत्मा) शांत मन (के होते हैं) (न) न (तो वह) (शोचति) चिंतीत होते हैं (न) न ( तो वह ) (काडक्षति) किसी चीज़ की आशा करते हैं। (सर्वेषु) (वह) सब (भूतेषु) मनुष्यों से (सम:) एक जैसा व्यवहार करते हैं। (मत्) (वह केवल) मेरी (भक्तिम्) प्रार्थना करते हैं। (पराम्) (और स्वर्ग के) सबसे श्रेष्ठ स्थान को (लभते) पा लेते हैं।

अनुवाद

ईश्वर की प्रार्थना में लगे मनुष्य शांत मन के होते है। न तो वह चिंतित होते है, न तो वह किसी चीज़ की आशा करते हैं। वह सब मनुष्यों से एक जैसा व्यवहार करते हैं। वह केवल मेरी प्रार्थना करते हैं। और स्वर्ग के सबसे श्रेष्ठ स्थान को पा लेते हैं।