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अध्याय 18 ,श्लोक 56



श्लोक

सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः । मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ||56||

सर्व कर्माणि अपि सदा कुर्वाणः मत व्यपाश्रयः । मतत्प्रसादात् अवाप्नोति शाश्वतम् पदम् अव्ययम् ।। ५६ ।।

शब्दार्थ

(अपि) किन्तु (सच तो यह है कि) (सर्व) सभी (कर्माणि) सत्कर्मों को (मत) मेरे (व्यपाश्रयः) सहारे (कुर्वाण) करने वाला (मत) मेरी (प्रसादत) कृपादृष्टि (से ही) (शाश्वतम्) (स्वर्ग का) सदैव स्थित रहने वाला (अव्ययम्) अविनाशी (पदम्) स्थान (अवाप्नोति) पा सकता है।

अनुवाद

किन्तु सच तो यह है कि सभी सत्कर्मों को मेरे सहारे करने वाला, मेरी कृपादृष्टि से ही स्वर्ग का सदैव स्थित रहने वाला अविनाशी स्थान पा सकता है।