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अध्याय 18 ,श्लोक 63



श्लोक

इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया । विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ॥63||

इति ते ज्ञानम् आख्यातम् गुह्यात् गुह्यतरम् मया। विमृश्य एतत् अशेषेण यथा इच्छिसि तथा कुरु ।। ६३ ।।

शब्दार्थ

(तत) इस तरह (मया) मेरे द्वारा (ते) तुम्हें (गुह्यतरम्) अत्यन्त गुप्त (ज्ञानम्) ज्ञान (आख्यातम्) कहा गया (एतत) इस (ज्ञान पर ) (अशेषेण) अच्छी तरह से (विमृश्य) विचार करके (यथा) जैसा (इच्छसि) चाहते हो (तथा) वैसा (कुरु) करो ।

अनुवाद

इस तरह मेरे द्वारा तुम्हें अत्यन्त गुप्त ज्ञान कहा गया। इस ज्ञान पर अच्छी तरह से विचार करके जैसा चाहते हो वैसा करो ।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, “यदि जो आदमी रसूल के विरोध पर कटिबद्ध हो और ईमान वालों के रास्ते के सिवा किसी और राह पर चले, जबकि उस पर सीधा मार्ग स्पष्ट चुका हो, तो उसको हम उसी ओर चलाएंगे जिधर वह खुद फिर (पलट) गया, और उसे जहन्नम में झोकेंगे जो सबसे बुरा ठिकाना है।” (अन निसा-४, आयत ११५)