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अध्याय 18 ,श्लोक 64



श्लोक

सर्वगुह्यतमं भूतः श्रृणु मे परमं वचः । इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥64 ||

सर्व-गुह्य-तमम् भूयः शृणु मे परमम् वचः । इष्टः असि मे दृढम् इति ततः वक्ष्यामि ते हितम्
।।६४।।

शब्दार्थ

(मे) (तुम) मुझ पर (दृढम्) दृढ़ता से श्रद्धा रखने वाले (इष्ट:) मित्र (असि) हो (इति) इसलिए (ते) तुम्हारे (हितम्) हित के लिए (मे) मेरे द्वारा (तमम्) उन (सर्व) सभी (गुह्य) गुप्त (वच:) आदेश में से (तत:) उन (परमम्) सबसे श्रेष्ठ आदेश को (भूयः) दोबारा (वक्ष्यामि) कह रहा हूँ (शृणु) (इन्हें ध्यान से सुनो।

अनुवाद

तुम मुझ पर दृढ़ता से श्रद्धा रखने वाले मित्र हो, इसलिए तुम्हारे हित के लिए मेरे द्वारा उन गुप्त आदेश में से उन सबसे श्रेष्ठ आदेश को दोबारा कह रहा हूँ (इन्हें ध्यान से सुनो।