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अध्याय 18 ,श्लोक 72



श्लोक

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा। कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय ॥72॥

कच्चित् एतत् श्रुतम् पार्थ त्वया एक अग्रेण चेतसा ।
कच्चित् अज्ञान सम्मोहः प्रणष्टः ते धनन्जय ।। ७२ ।।

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (अर्जुन) (कच्चित्) क्या (त्वया) तुम्हारे (चेतसा) मन को (एक-अग्रेण) एक ईश्वर में एकाग्र करके, (एतत्) इस ज्ञान को (श्रुतम् ) तुमने सुना ? ( धनन्जय ) हे धनन्जय (अर्जुन) (कच्चित्) क्या (ते) तुम्हारी (अज्ञान) अज्ञान पर आधारित ( सम्मोहः) उलझन (प्रणष्ट:) दूर हो गई?

अनुवाद

हे पार्थ (अर्जुन)! क्या तुम्हारे मन को एक ईश्वर में एकाग्र करके, इस ज्ञान को तुमने सुना? हे धनन्जय (अर्जुन)! क्या तुम्हारी अज्ञान पर आधारित उलझन दूर हो गई ?